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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

अध्याय - 1

हिन्दी काव्य का इतिहास, आलोचना, अनुसंधान
एवं साहित्येतिहास दर्शन के समकालीन सिद्धान्त

 

प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

संस्कृति की विकास यात्रा से जुड़े होने के कारण प्राचीनकाल से ही इतिहास को एक स्वतंत्र विषय के रूप में अध्ययन हेतु मान्यता मिली हुयी थी। इतिहास शब्द इतिहास शब्द के योग से निर्मित हुआ है। जिसका शाब्दिक अर्थ 'ऐहा ही हुआ' या 'ऐसा ही था' लिया जाता है। व्युत्पत्तिपरक दृष्टि से देखा जाये तो इतिहास शब्द से दो प्रमुख तथ्य स्पष्ट होते हैं। पहला यह है कि इतिहास का सम्बन्ध अतीत से है तथा दूसरा उसके आलेखन में यथार्थ घटनाओं को ही प्रमुखता दी जाती है। आज इतिहास शब्द को इतने व्यापक अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है कि उसके अन्तर्गत, बीते समय की प्रत्येक परिस्थिति, घटना, प्रक्रिया एवं प्रवृत्ति की व्याख्या का समावेश हो जाता है।

इतिहास का स्वरूप भी मानव चिन्तन की विकासात्मक प्रक्रिया एवं परिवर्तित दृष्टि के अनुसार बदलती है। यह प्रश्न आज भी विवाद का विषय बना हुआ है कि इतिहास कला है या विज्ञान। इसका कारण यह है कि इतिहास को कभी कला के क्षेत्र में तो कभी विज्ञान के क्षेत्र में स्वीकार किया जाता है। किसी भी वस्तु के अध्ययन पद्धति एवं रचना पद्धति पर निर्भर करता है कि वह कला है या विज्ञान का विषय। इतिहास से हमें अतीत की जानकारी प्राप्त होती है किन्तु उस ज्ञान या जानकारी को हम किस रूप में उपयोगी बनाते हैं यह हमारी संकल्पनात्मक शक्ति पर निर्भर करता है।

यदि हम ऐतिहासिक इतिवृत्त को वैयक्तिक अनुभूति एवं लालित्यपूर्ण शैली में प्रस्तुत करें तो वह कला की संज्ञा से विभूषित हो सकता है। प्रतिभाशाली साहित्यकार काव्य में इतिहास को आधार बनाकर भाव और कला का अपूर्व सामंजस्य उपस्थित कर देता है। यही इतिहास साहित्यकार द्वारा कला के रूप में परिणत हो जाता है। इसी प्रकार जब ऐतिहासिक विवरण को वस्तुपरक दृष्टिकोण तार्किक शैली एवं अनुसंधनात्मक पद्धति से प्रस्तुत किया जायेगा तो वह विज्ञान की विशिष्टताएँ में समाविष्ट हो जायेगा।

आधुनिक युग के इतिहास को कला की अपेक्षा विज्ञान के अधिक समीप माना गया है। इसी दृष्टिकोण के आधार पर आज का इतिहासकार तथ्यों की यथार्थता और निष्कर्षों की प्रामाणिकता पर अधिक बल देता है।

इतिहास की विविध परिभाषाएँ

इतिहास क्या है? यह प्रश्न अत्यन्त जटिल एवं गूढ़ है क्योंकि अभी तक इतिहास की सर्वमान्य परिभाषा निश्चित नहीं की जा सकी है। निम्नलिखित परिभाषाओं के आधार पर इतिहास के विषय में एक धारणा का निर्माण हो सकता है जो इस प्रकार है -

1. हेनरी पेरिन के अनुसार, "History is the story of deeds and achievements of men living in societies."

Henry Pirenne - Quoted from History, its purpose and Method.

2. चार्ल्स फर्थ के अनुसार, "Not only it is a branch of knowledge to be studied for its own sake but a kind of knowledge which is useful to men in daily life."

3. वाल्टर रेले (Walter Raleigh) के अनुसार, "The end and scope of all history is to teach us by examples of times past such wisdom as may guide our desires and actions."

चार्ल्स फर्थ के अनुसार, "इतिहास ज्ञान की एक शाखा ही नहीं अपितु एक विशेष प्रकार का ज्ञान है जो मनुष्य के जीवन में उपयोगी है। चार्ल्स फर्थ के समान वाल्टर रेले ने भी इतिहास को ज्ञान की शाखा माना है। उनके अनुसार इतिहास. का उद्देश्य अतीत के उदाहरण द्वारा ऐसी शिक्षा प्रदान करना है जो मनुष्य की इच्छाओं और कार्यों का मार्गदर्शन कर सके। उदाहरण के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने सिकन्दर महान की असफलता को देखकर विश्व विजय की योजना का विचार छोड़ दिया।

4. कालिंग वुड ने अपने सर्वाधिक प्रसिद्ध वाक्यांश में कहा है कि सम्पूर्ण इतिहास विचारधारा का इतिहास होता है।

इतिहास में विचार को प्रधानता देने का तात्पर्य यह है कि विचार ही मानवीय कार्य व्यापार का मूल स्रोत है। इतिहास के महापुरुषों और राजाओं के कार्यों एवं उपलब्धियों का अध्ययन करने के पहले उनके विचारों का अध्ययन होता है। इतिहासकार जिस अतीत का अध्ययन करता है वह मृत अतीत नहीं बल्कि इतिहासकार के मस्तिष्क में सजीव अतीत होता है।

इतिहास में ग्रहीत समस्त तथ्यों के लिए व्याख्या की आवश्यकता पड़ती है। व्याख्या का आशय है कि पारस्परिक सम्बन्धों का निर्धारण। इस स्पष्टीकरण के लिए इतिहासकार की जिज्ञासा-वृत्ति सतत् संलग्न रहती है। ऐसी स्थिति में इतिहास अतीत एवं वर्तमान में सामंजस्य स्थापित करता है क्योंकि अतीत से जुड़ा रहता है और इतिहासकार वर्तमान का प्रत्यक्ष भोक्ता है। अतीत और वर्तमान की सम्बन्धित मनःस्थिति में रहकर भी इतिहासकार भावी अनुमान हेतु स्वतंत्र है।

इतिहास की उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि अतीत के अन्तराल में निहित उन तथ्यों का अवलोकन कराना इतिहास का पुनीत कर्त्तव्य है। इतिहास का कार्य वर्तमान को प्रकाशित तथा नियंत्रण करना तथा सुखद भविष्य के निर्माण में सहायक होकर मार्गदर्शन करना है। 

इतिहास के प्रति भारतीय एवं पाश्चात्य अवधारणा - इतिहास का स्वरूप भी सृष्टि की बिकासात्मक प्रक्रिया के साथ बदलता रहता है। इसके साथ ही उसकी अवधारणा में भी परिवर्तन होता रहा है। भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण दोनों में ही इतिहास की अवधारणा के प्रति भिन्न मतहै।

भारतीय अवधारणा

इतिहास के प्रति भारतीय अवधारणा - इतिहास के प्रति भारतीय दृष्टिकोण मूलतः आध्यात्मिक एवं आदर्शवादी अधिक रहा है क्योंकि यहाँ के मनीषियों द्वारा भौतिक जगत की घटनाओं में भी आध्यात्मिक मूल्यों के सत्यान्वेषण की प्रवृत्ति अधिक रही है। यहीं कारण है कि यहाँ के प्राचीन इतिहासकारों ने अंतीत की व्याख्या भी इसी दृष्टिकोण से की है। इसका एक और भी कारण दिया जा सकता है कि भारत में मनुष्य प्रकृति के समक्ष अपने को नगण्य एवं तुच्छ पाता है और साथ ही जीवन की निस्सारवादी दृष्टि की प्रधानता ने ही इसकी विचारधारा में परिवर्तन उपस्थित किया है। महाभारतकार ने इतिहास को एक ऐसा पूर्ववृत्त माना जिसके माध्यम से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का उपदेश दिया जा सके। इसी प्रकार पौराणिकों ने ऋषियों एवं महापुरुषों के चरित्रगान को इतिहास के रूप में स्वीकार करते हुए घटना की अपेक्षा चरित्र को अत्यधिक महत्त्व दिया।

भारतीय अवधारणा के अनुसार इतिहास एक निरन्तर परिचालित युगचक्र है और मानव जीवन उसी से नियंत्रित होता है। ब्रह्मा और युगचक्र की सृष्टि होती है -

(1) सतयुग
(2) त्रेता
(3) द्वापर
(4) कलियुग।

यह युगचक्र निरन्तर चलता रहता है। धर्म की उपेक्षा और मानवीय पीड़ा जब अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच जाती है तो मानव जाति के उद्धार के लिए ईश्वर का अवतार होता है।

अवतारवाद भारतीय इतिहास की अवधारणा है। राम और कृष्ण का अवतरण भी इसी अवधारणा की पुष्टि करता है। रामचरितमानस में अवतारवाद के सिद्धान्तों को सर्वाधिक सुन्दर ढंग से व्यक्त किया गया है। भारतीय इतिहास की अवधारणा में कर्म को प्रधानता दी गई है। कर्म सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य जैसा कर्म करता है उसके अनुसार वर्तमान में फल प्राप्त होता है। वास्तव में भारतीय इतिहासकार ने अपनी संस्कृति के अनुरूप इतिहास के क्षेत्र में समन्वयात्मक दृष्टिकोण का परिचय देते हुए उसमें सत्यं शिवं व सुन्दरम् की प्रतिष्ठी की जो उसकी परम्पराओं को देखते हुए उचित एवं स्वाभाविक है।

पाश्चात्य अवधारणा - भारतीय अवधारणा में इतिहास को आदर्शवादी माना गया है। जबकि पाश्चात्य अवधारणा में यथार्थवादी माना गया है। यूनानी विद्वान हेरोडोटस के अनुसार इतिहास का अर्थ खोज, सर्वेक्षण एवं अनुसंधान है। उसके अनुसार इतिहास एक वैज्ञानिक विधा है तथा इनमें अतीत के आलोक में भविष्य पर प्रकाश डाला जाता है। इस प्रकार हेरोडोटस ने भी यह स्पष्ट किया है कि इतिहास का लक्ष्य प्राकृतिक या भौतिक परिवर्तन की प्रक्रिया की व्याख्या करनी है। मध्ययुग में इतिहास को धार्मिक भावनाओं ने विशेष रूप से प्रभावित किया। बुद्धिवादी युग के इतिहासकारों ने तथ्यों की प्रधानता को मान्यता दी। उन्नीसवीं सदी में कांट, हर्डर, हेंगल तथा कार्लमार्क्स ने इतिहास की अवधारणा को नवीन स्वरूप प्रदान किया। इतिहास की विकासवादी एवं वैज्ञानिक आधार पर समीक्षा की यही नहीं इन चिन्तकों ने अतीत के अध्ययन को वर्तमान तथा भविष्य के लिए अत्यन्त उपयोगी बताया।

बीसवीं शताब्दी में इतिहास की अवधारणा का लक्ष्य मनुष्य को जातीयता, धार्मिकता तथा राष्ट्रीयता की संकीर्ण भित्तियों से ऊपर उठाना बताया गया। विश्वभ्रात्ववाद तथा सार्वभौमिक आयाम में प्रवेश करना ही इतिहास का लक्ष्य बताया। विश्व की विभिन्न समस्याओं तथा संस्कृतियों के माध्यम से मानव समाज का एकीकरण इतिहासकार का लक्ष्य बन गया। स्पेंगलर, एच.पी. वेल्स तथा टायन्बी जैसे इतिहासकारों ने संकुचित क्षेत्रीयता तथा राष्ट्रीयता का परित्यागकर विश्वभातृत्ववाद के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। इस प्रकार बीसवीं शताब्दी के इतिहासकारों ने इतिहास की अवधारणा को सार्वभौमिक स्वरूप प्रदान किया। रॉके ने इतिहास को वैज्ञानिक विधाओं से परिष्कृत करके वस्तुनिष्ठ इतिहास लेखन को आवश्यक बताया है और मानव ज्ञान की एक विशिष्ट विधा के रूप में स्वीकार किया।

निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि इतिहास के धारणा विभिन्न युगों में परिवर्तित होती रही है और उसमें समय तथा पारिस्थितियों का पूर्ण योग रहा है। कहा जा सकता है कि इतिहास मानव ज्ञान की एक विशिष्ट विधा है जिसकी आधुनिक जीवन में अत्यधिक उपादेयता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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